Tuesday, January 27, 2009

आतंकवाद


आतंक के साये में,
सोते हम रहते है।
जब वे हमले करते है,
तब हम रोते रहते है।।

हर बरस ऐसे हमलो से,
अपना देश है जूझता।
"खुदा" के नाम पर,
हर कोई लूटता है।।

लूट गया किसी का बेटा,
लूट गया किसी का भाई।
हर क्षण लूटता इस देश में,
किसी न किसी का सुहाग।।

जब हमले होते है,
तब हम सोते रहते है।
कोसते सरकारो को,
तब पर भी हम कुछ न करते।।

ऐसा क्‍यो होता है?
मजहब के नाम पर।
अपनो की हत्‍या होती है,
पर हमको गम भी न होती है।।

कितना निदर्यी बन गया है मानुस?
जो निर्मम बन जाता है।
इस घरती पर मानव रूप रख,
जो दानव बन जाता है।।

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